क्या हो तुम
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अक्सर उन अनींदी रातों में,
या अधखुली आँखों में,
उन अनदेखे,
अधूरे से ख्वाबों में,
ढूंढ़ता हूँ तुम्हे मैं,
और तुम,
देखती हो मुझे,
खुशनुमा हवाओं के सांचे में,
उड़ान
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उड़ान भरनी है मुझे,
तेरे आसमानों में,
छूना है इन टिमटिमाते तारों को,
बचपन से लुभाते आये हैं,
ये मुझे,
अब बड़ा हो गया हूँ,
यादों का पानी
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बस यूँ ही,
आज यादों के पन्ने पलटते,
कुछ याद आया,
वो बारिश,
वो कागज के जहाज,
वो गुडिया,
और गुड्डे की बारात,
वो टूटी रंगीन सी चूडियाँ,
निःशब्द
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आज फिर चाहत जगी,
शब्दों की माला पिरोने की,
हुआ दिल,
कुछ ऐसा लिखें,
जो लिखा न जाये,
पर,
सब कुछ कह जाए,
कुछ दास्ताँ सा,
पता है मुझे
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कुछ दिनों से,
कुछ जल रहा है कहीं,
दिल की गहराइयों में कहीं,
कुछ खलिश सी है,
कुछ खोया है,
या कुछ पाने की तैयारी है ये,