उड़ान भरनी है मुझे,
तेरे आसमानों में,
छूना है इन टिमटिमाते तारों को,
बचपन से लुभाते आये हैं,
ये मुझे,
अब बड़ा हो गया हूँ,
सोचता हूँ,
पा ही लूँ इन्हें,
नापना है तेरा ये सारा जहाँ मुझे,
अपने परों से,
देखूं कैसे बनाया है तुने,
इतना बड़ा संसार,
कैसे भरे इतने रंग,
जब उमंग इतनी है मन में,
तो आँखों में,
उदासी,
एक अजनबी सा निशान,
क्यों छोड़ जाती है हमेशा,
क्यों गुमशुदा सा हो जाता है,
ये दिल,
जो अभी नन्हा सा ही है,
क्यों इतनी भीड़ में भी,
अकेला पाता है ये मन,
अपने को,
पता है इसे,
तू है साथ मेरे,
एक हलकी सी याद माँ की,
भरती है फिर उमंग मुझमे,
और,
अब,
तैयार हूँ,
फिर से उड़ने को मैं||